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हुंकार:
जेसीआई ने वर्चुअल मीटिंग में उठाई डिजिटल मीडिया को पूरी मान्यता देने की मांग

डिजिटल मीडिया के पत्रकारों के अधिकारों को लेकर हुई महत्वपूर्ण चर्चा

देशभर से वरिष्ठ पत्रकारों ने लिया वर्चुअल मीटिंग में हिस्सा

रांची: पत्रकारों के संबंध में सरकार की दोहरी नीति को आड़े हाथों लेते हुए जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया (रजि0) ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि सरकार एक तरफ तो डिजिटल मीडिया को श्रमजीवी पत्रकारों की श्रेणी में रखती है, तो दूसरी तरफ उनके अस्तित्व को ही नकार देती है। यह चिंताजनक स्थिति है।

जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया (रजि0) ने एक वर्चुअल मीटिंग कर ई-पेपर की मान्यता और और डिजिटल मीडिया के पत्रकारों के हक के लिए आवाज उठाते हुए कहा है कि अब जबकि छपाई से संबंधित सभी वस्तुएं बहुत महंगी हो गई हैं और दूसरी तरफ हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी डिजिटल भारत की परिकल्पना को साकार करते हुए पेपरलेस भारत को साकार करने में लगे हैं, तो ऐसी स्थिति में ई-पेपर को मान्यता विधि सम्मत होना ही चाहिए। इसलिए ई-पेपर की मान्यता की बात रखी गई।

दूसरी तरफ विचार व्यक्त किया गया कि समाचार संकलन में स्थानीय पत्रकारों की अहम एवं महत्ती भूमिका होती है, परंतु सरकार के पास न तो स्थानीय पत्रकारों के संबंध में और न ही डिजिटल मीडिया के पत्रकारों के संबंध में कोई लेखा-जोखा है। आज जबकि छोटे-बड़े पत्रकारों की संख्या मिलाकर एक करोड़ के आसपास है, तो ऐसी स्थिति में उनके अधिकारों का हनन कैसे कानून सम्मत हो सकता है। इसलिए सरकार को चाहिए कि अब डिजिटल मीडिया, ई-पेपर के साथ-साथ स्थानीय पत्रकारों की सुधि ले और उन्हें भी सम्मान से जीने का हक प्रदान करे।

इस अवसर पर अपना मत व्यक्त करते हुए संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने कहा कि आज जब हमारे प्रधानमंत्री डिजिटल भारत को प्राथमिकता दे रहे हैं, तब ऐसी स्थिति में डिजिटल मीडिया के पत्रकारों का तिरस्कार शोभा नहीं देता है। जब आज भारत पेपरलेस व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, तब ई-पेपर को मान्यता न देना कहां का न्याय है? यदि समय रहते ई-पेपर को मान्यता नहीं दी गई, तो छोटे समाचार पत्रों के आगे कई समस्याएं पैदा हो जाएंगी और उनके अस्तित्व को बचा पाना मुश्किल होगा।

संस्था के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. आर सी श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार को क्षेत्रीय पत्रकारों के हक के लिए विचार करना चाहिए क्योंकि वास्तव में पत्रकारिता की रीढ़ की हड्डी वे क्षेत्रीय पत्रकार ही हैं। उनके बिना व्यापक स्तर पर जन-जन की समस्याओं और उनसे संबंधित खबरों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। और ई-पेपर को मान्यता दिए बिना डिजिटल भारत की कल्पना स्वप्न मात्र है।

इस अवसर पर प्रदेश सलाहकार समिति के वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र पांडेय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज पत्रकारिता माफियाओं और खाकी तथा खादी के चौतरफा वार को झेल रही है। यह लोग पत्रकारिता को हाईजैक कर लेना चाहते हैं। आज पत्रकारिता का सबसे खराब दौर चल रहा है। यदि सभी पत्रकार भाइयों ने मिलकर एक साथ आवाज बुलंद नहीं की, तो हमारे अस्तित्व को बचा पाना मुश्किल होगा।

वरिष्ठ पदाधिकारी अजय शुक्ला ने कहा कि हमें अपने हक के लिए एकजुट होकर लड़ना ही पड़ेगा, बाहर निकलना ही पड़ेगा, क्योंकि बिना लड़े अपना हक पा लेना अब कठिन कार्य लग रहा है।

झारखंड के वरिष्ठ पदाधिकारी डॉ. विवेक पाठक ने कहा कि पत्रकारों को अब अपने छोटे-छोटे हितों को नजरअंदाज करते हुए व्यापक स्तर पर अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए एकत्र होना चाहिए और जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया ही पत्रकारों की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए एकमात्र विकल्प है। इसलिए संस्था के के बैनर तले अपनी आवाज बुलंद करनी होगी।

बांदा के वरिष्ठ पदाधिकारी राजेश पांडेय और विक्रांत सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दिन-प्रतिदिन पत्रकारों पर शोषण और अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं आज पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं। इसलिए हमें एक होकर अपनी आवाज बुलंद करनी ही पड़ेगी, ताकि हमारे हितों की रक्षा हो सके।

बाराबंकी से वरिष्ठ पदाधिकारी बी. त्रिपाठी ने कहा कि पत्रकारों को अपने हितों के प्रति जागरूकता लानी होगी और संगठन द्वारा जो जिम्मेदारी दी गई है, उसका ईमानदारी से पालन करना होगा। आपसी विवाद और छोटे-बड़े की भावना को त्याग कर एक होकर अपनी लड़ाई लड़नी होगी। तभी हमारे हितों की रक्षा हो सकती है और हमें हमारा हक मिल सकता है।

संस्था के वरिष्ठ राष्ट्रीय पदाधिकारी हरिशंकर पराशर ने कहा कि पत्रकारों के हित में संविधान में संशोधन अति आवश्यक है और समय आ गया है कि सरकार पत्रकारों के साथ भेदभाव खत्म करते हुए सामान्य नागरिक संहिता की तरह ही सामान्य पत्रकार संहिता जारी करे, जिसमें छोटे बड़े सभी पत्रकारों का हित सुरक्षित हो।

इस अवसर पर संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग सक्सेना, राष्ट्रीय संयोजक डॉ. आर सी श्रीवास्तव, अजय शुक्ला, शिवजी भट्ट, नागेंद्र पांडेय, विक्रांत प्रताप सिंह, डॉ. विवेक पाठक, रविकांत साहू, सचिन श्रीवास्तव, हरिशंकर पराशर, राजेश पांडेय, शैलेंद्र गुप्ता, रंजीत चौरसिया विष्णु कांत तिवारी, बी. त्रिपाठी, गणेश द्विवेदी, नीरज श्रीवास्तव, आसिफ कुरैशी, राघवेंद्र त्रिपाठी समेत करीब आधा सैकड़ा लोगों ने अपने विचार मैसेज के माध्यम से व्यक्त किए। खराब नेटवर्कके चलते वे ऑनलाइनआकर अपनी बात नहीं रख सके।

(अपडेटेड: 03 जुलाई 2023, 07:02 IST)

(स्रोत: वीएनएन - भारत)

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