साजिश और अवमानना: 'हेमंत सरकार के इशारे पर हो रही है न्यायालय की अवमानना'
विचाराधीन मामले में कोर्ट रूम के बाहर क्लीन चिट कैसे दी: प्रतुल शाहदेव
पत्रकार वार्ता को संबोधित करते प्रतुल शाहदेव
रांची:
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने झारखंड में सत्तारूढ़ हेमंत
सोरेन की सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि पिछले कुछ दिनों से दिल्ली से
लेकर रांची तक कोर्ट रूम के बाहर एक एजेंडा सेट किया जा रहा है। उच्च न्यायालय में
विचाराधीन मामलों में एक सोची-समझी साजिश के तहत पब्लिक ओपिनियन बनाने की कोशिश हो
रही है।
भाजपा प्रदेश कार्यालय में पत्रकारों से बात करते हुए प्रतुल शाहदेव ने कहा कि
कोर्ट के बाहर दिल्ली के गलियारों में या रांची के कॉरीडोर में एक एजेंडा सेट किया
जा रहा है। उन्होंने कहा कि झामुमो की प्रेस वार्ता में बिजली पानी की समस्या पर
चर्चा न करना, उस पर कोई स्पष्टीकरण या जवाब नहीं देना दुर्भाग्यपूर्ण है। राज्य की
बिजली पानी की जो समस्या है, इस समय उससे अधिक महत्वपूर्ण कोई विषय नहीं था।
उन्होंने कहा कि दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली एक
न्यायालय में विचाराधीन मामले पर अपना वक्तव्य देते हैं, जबकि वह मामला हाई कोर्ट
में चल रहा है। इसमें 2 पेशी हो चुकी है। उन्होंने कहा कि जस्टिस एके गांगुली को
ज्युडिशियल कंडक्ट की अच्छे से जानकारी है कि किसी न्यायलय में विचाराधीन मामले में
सार्वजनिक टिप्पणी कर किसी को क्लीन चिट देना न्यायालय की अवमानना के दायरे में आता
है। इसके बावजूद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के जजमेंट को दरकिनार करके एक चैनल को
इंटरव्यू देने के दौरान राज्य सरकार को क्लीन चिट दिया है।
प्रतुल शाहदेव ने कहा कि जिस मामले का उल्लेख जस्टिस गांगुली ने किया था, उसी मामले
को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं के द्वारा की गई प्रेस वार्ता में सरकार के
बचाव में वही सब बातें बोली गईं, जो एक दिन पहले जस्टिस गांगुली ने कही थी। उन्होंने
कहा कि भाजपा इन दोनों प्रकरण को पूर्णतः अदालत की अवमानना का मामला मानती है
क्योंकि जो मामला सब-ज्युडिस है, न्यायालय में विचाराधीन है, उस पर किसी को टिप्पणी
करने का हक नहीं है।
उन्होंने कहा कि एक ऐसे व्यक्ति सरकार को क्लीन चिट दे रही है, जिसके ऊपर खुद
बड़े-बड़े आरोप लगे हों। जस्टिस गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के
अध्यक्ष पद से इस्तीफा क्यों देना पड़ा था, यह जगजाहिर है।
प्रतुल शाहदेव ने कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट 1971
की धारा सी (2) का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून कहता है कि अवमानना उसे माना
जाएगा, जो न्यायालय में चल रही ज्युडिशियल प्रोसिडिंग में अदालत के बाहर इंटरफेयर
या पब्लिक ऑपिनियन बनाने की कोशिश करता है। उसके ऊपर यह कानून लागू होता है।
उन्होंने कहा कि प्रशांत भूषण बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने
स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर सब-ज्युडिस मामले में अदालत के बाहर कोई बयान देकर
निर्णय को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है, तो उसे न्यायालय की अवमानना (कंटेंप्ट
ऑफ कोर्ट) माना जाएगा। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है कि इग्नोरेंस ऑफ
लॉ इज नो एक्सक्यूज, यानी कानून की उपेक्षा करना या इसकी जानकारी न होने की बात कहना
आपकी भूल पर पर्दा नहीं डाल सकता है। इसलिए झामुमो के नेता यह नहीं कह सकते कि उन्हें
कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट के नियम की जानकारी नहीं।
प्रतुल शाहदेव ने कहा कि जस्टिस एके गांगुली और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं का
कोर्ट रूम के बाहर इस तरीके की चर्चा करने से यह जाहिर होता है कि वे सभी न्यायिक
प्रक्रिया में बाधा डाल रहे हैं और यह न्यायालय की अवमानना है। यह लोकतंत्र के लिए
शुभ संकेत नहीं है।
इस प्रेस वार्ता में पार्टी के प्रदेश मीडिया सह प्रभारी अशोक बड़ाईक एवं भाजपा विधि
विभाग के अधिवक्ता सुधीर श्रीवास्तव भी उपस्थित थे।
(अपडेटेड: 29 अप्रैल 2022, 19:22 IST)
(विशेष खबर ब्यूरो)
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