उत्तराखंड से झारखंड आए दिव्य ज्योति कलश का हुआ भव्य और विधिवत स्वागत
Ranchi News : गायत्री परिवार (Gayatri Pariwar) युगतीर्थ शान्तिकुञ्ज हरिद्वार उत्तराखंड से चलकर झारखंड आए दिव्य ज्योति कलश का गायत्री शक्तिपीठ सेक्टर टू धुर्वा तीर्थ में भव्य और विधिवत स्वागत हुआ। शान्तिकुञ्ज हरिद्वार संबंधित मुख्य मुख्य प्रकोष्ठ प्रभारी और झारखंड के 24 जिलों के प्रतिनिधिमंडल नायकों और परिजनों के सानिध्य में उनका विधिवत स्वागत अभिनन्दन, पूजा-पाठ करके रांची शहर में 4 दिसम्बर से पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण की प्रथम चरण में अनेकानेक मुहल्लों में दर्शन, पूजन-अर्चन व देव स्थापन कर धन्य हुए।
इसने रांची जिले के प्रखंडों में प्रथम कांके प्रखंड क्षेत्र में प्रवेश किया। शान्तिकुञ्ज और गुरुवर श्रीआचार्य वेदमूर्ति-तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं सजल श्रद्धा व शक्ति स्वरूपा गुरुमाता भगवती देवी का भारत भूमि पर अवतरण कथा, उनकी 21वीं सदी के नवयुगनिर्माण, उत्कृष्ट विचार का व्यापक संदेश अभियान के अंतर्गत यहां ब्रह्मचारी नगर महावीर मंदिर परिसर में, महिला मंडल प्रतिनिधित्व में कांके ब्लॉक चौक में, पतरा टोली हनुमान मंदिर परिसर में फिर संध्याकाल में शिव मंदिर में गायत्री-दीपयज्ञ हुआ।
Gayatri Pariwar News
यहां क्षेत्र के करीब 250 भक्तों ने भागीदारी की और दर्जनों ने गायत्री महामंत्र की दीक्षा संस्कार, देव स्थापना, पूजन पद्धति के 5 सूत्र पर प्रकाश डाल यज्ञीय वातावरण में जन्मदिवस संस्कार कराए। इस दौरान प्रतिनिधि नायक त्रिलोचन साहू ने अपने संबोधन में “ईश्वर-विश्वास” विषय पर संक्षिप्त आध्यात्मिक प्रकाश डालकर बताया कि ईश्वर-विश्वास मनुष्य जीवन की सार्थकता और सुव्यवस्था के लिए बहुत आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि यों तो सामान्य नैतिक सिद्धान्तों पर आस्था रखते हुए भी मनुष्य नेक जीवन जी सकता है, अपने व्यक्तिगत उत्कर्ष और सामाजिक उन्नति में सफल योगदान दे सकता है, लेकिन ईश्वर-विश्वास के अभाव में वह कभी भी भटक सकता है। एक सर्वव्यापी सर्वसमर्थ न्यायकारी सत्ता के रूप में ईश्वर की मान्यता मनुष्य को अदर्शनिष्ठ, समाजनिष्ठ तथा विकासोन्मुख रखने में उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
Gayatri Pariwar Divya Jyoti
उन्होंने कहा कि आस्तिकता आज उपेक्षणीय नहीं अपेक्षित है। यज्ञीय अनुष्ठान, संस्कारवान जीवन, सन्मार्ग, सत्कर्म, सद्विचार संवर्धन, अवांछनीयता उन्मूलन पर कई उदाहरण दृष्टांत प्रस्तुत कर प्रकाश डाले। उन्होंने कहा कि अनगढ़ता से सुगढ़ता में प्रवर्तन का नाम संस्कार है। परिष्कृत जीवन जीना ही संस्कारित जीवन है। बताया कि जन्मना जायते शूद्र, संस्कराद् द्विज उच्यते।
त्रिलोचन साहू ने बोओ और काटो का सिद्धांत सूत्र बताया। प्रथम बेला में इस अवसर पर नए परिजन भक्तों ने एक कुंडीय यज्ञ कार्यक्रम भी कराया और यज्ञीय पूर्णाहुति की साक्षी में श्रद्धालु भक्तों ने एक बुराई त्याग, एक अच्छाई ग्रहण करने के साथ यज्ञमय व निर्मल जीवन जीने संकल्प लिया। इस अवसर पर प्रज्ञागीत के स्वर, जयघोष के जयकारा व नारों पूरा क्षेत्र गुंजायमान हुआ।
-विशेष खबर ब्यूरो
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